बीत गया सारा असाढ़ जब
तब आए बादल।
मरने वाला बीज कोख में
लगा कुनमुनाने
‘गर्भवती धरती’ उदास थी
लगी मुस्कुराने
गोद भराई हुई मर गया
हरा-हरा आँचल।
पीले पड़े हुए पत्तों का
रंग हुआ धानी
‘सुनो’ धान के बिरवे रोपो
ठहरा है पानी
आधी रात ‘‘गाँव की बहुओं’’
की ‘पूजा का फल’।
अब तो भादों में कुआर में
थोड़ी कृपा करें
नए-नए चावल पकने की
घर में गमक भरें’’
डिह बाबा पर हवन कर रहे
पंडित राम अचल।